इस ब्रह्माण्ड की कोई सबसे बड़ी चीज है तो वह निश्चितरूप से हमारी धरती से खरबों प्रकाश वर्ष दूर अंतरिक्ष में विशेषकर हमारी धरती और हमारा सौरमंडल, जिसे हम आकाशगंगा या गैलेक्सी भी कहते हैं, के बिल्कुल उसके केन्द्र में स्थित एक सुपरमैसिव ब्लैकहोल है। हमारी आकाशगंगा से भी बड़ी-बड़ी आकाशगंगाओं यानी गैलेक्सीज हमारे ब्रह्माण्ड में उपस्थित हैं, जाहिर है उनके केन्द्र में स्थित ब्लैकहोल्स हमारी आकाशगंगा में अवस्थित ब्लैकहोल से भी बड़े होंगे।
खगोल वैज्ञानिकों ने हाल ही में ब्रह्मांड के सबसे बड़े ब्लैक होल की खोज की है, इसका वजन, आकार तथा द्रव्यमान इतना ज्यादा है, जिसका इस धरती पर रहनेवाले धरतीपुत्र हम मानव कल्पना भी नहीं कर सकते। यह ब्लैकहोल हमारे सूर्य के द्रव्यमान से 40अरब गुना ज्यादा गुना बड़ा है। वैज्ञानिकों ने इसका नाम S5 0014+813 रखा है, इसकी खोज कनाडा और स्पेन के वैज्ञानिकों ने चंद्र x-ray टेलीस्कोप का उपयोग करके 3.5 अरब प्रकाश वर्ष दूर गैलेक्सियों के अध्ययन से लगाया है।
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वैज्ञानिकों के अनुसार ब्लैकहोल जितने बड़े होते हैं, उनसे निकलने वाली जेट स्ट्रीम भी उतनी ही बड़ी होती है, वैज्ञानिक उनसे निकलने वाली इस जेट स्ट्रीम की चमक के आधार पर यह अंदाजा लगा लेते हैं कि कोई ब्लैक होल कितना बड़ा है। ब्रह्माण्ड के इस दैत्याकार आकार वाले सबसे बड़े ब्लैक होल के बारे में एक और बहुत बड़ी ही रोचक बात सामने आई है।
अभी तक यह माना जाता था कि गैलेक्सी के केंद्र में स्थित ब्लैकहोल और गैलेक्सी दोनों का जन्म और विकास साथ ही साथ हुआ होगा, लेकिन इस अल्ट्रामैसिव ब्लैकहोल की खोज के बाद इस सिद्धांत में कुछ कमी प्रतीत होती है,क्योंकि यह अल्ट्रामैसिव ब्लैक होल बड़ी तेजी के साथ बड़ा होता जा रहा है यह इतनी तेजी से बड़ा हो रहा है कि इससे उस गेलेक्सी के अस्तित्व ही ख़त्म होने का खतरा उत्पन्न हो गया है। वैज्ञानिकों के लिए यह सुपरमैसिव ब्लैक होल ब्रह्माण्ड का एक रहस्य बना हुआ है,यह भी संभव है कि भविष्य में हमें इससे भी विशालकाय ब्लैक होल्स मिलें जो अपनी गेलेक्सी को ही पूरी तरह निगल चुकें हों।
इतना बड़ा ब्लैकहोल, जो सिर्फ 24 घंटे में हमारे सूरज को खा सकता है
अंतरिक्ष की अंतहीन विस्तारित गहराइयों में नई-नई विभिन्न नीहारिकाओं, तारे समूहों और ब्लैकहोलों को जानने की उत्सुकता लिए अपने जीवन के 24सों घंटे खपानेवाले खगोल वैज्ञानिकों को हाल ही में एक ऐसे विशालकाय ब्लैक होल के बारे में पता चला है जो हर दिन हमारे सूरज जितने बड़े एक सितारे को खा जाता है। केवल एक दिन की बिल्कुल छोटी सी अल्पावधि में J2157 नाम का यह सुपरमैसिव ब्लैकहोल इतना विशालकाय है कि ये रोज एक विशाल तारे को खा जाता है।
दरअसल खा जाने का वैज्ञानिक भाषा में ये आशय है कि इस कल्पना से बड़े सुपरमैसिव ब्लैकहोल का गुरुत्वाकर्षण बल इतना अधिक संघनीत है कि ये अत्यधिक दूरी पर मौजूद चीजों यथा उपग्रहों, ग्रहों और सूर्य से भी बड़े तारों को अपनी ओर आकर्षित कर के खुद में समेट लेता है। इन चीजों में कई तारे भी शामिल होते है जिनमें से हर 24 घंटे में हमारे सूर्य जितना बड़ा या उससे भी बड़ा कोई तारा भी इसकी भूख का शिकार हो होता है। द ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (The Australian National University) के शीर्ष वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किये गए एक शोध के अनुसार,इस ब्लैक होल का द्रव्यमान (mass) हमारे सूर्य के द्रव्यमान से भी 30खरब गुना बड़ा और विशाल है।

उक्त शोध करनेवाले आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों के मुखिया डॉ क्रिस्टोफर ओनकेन ने बताया कि “मिल्की वे यानी हमारी गैलेक्सी के ठीक मध्य स्थित ब्लैक होल अगर उक्त वर्णित विशालकाय ब्लैकहोल की तरह विकसित और बड़ा होना चाहे तो उसे हमारी आकाशगंगा के सभी तारों के दो-तिहाई हिस्से को खुद में शामिल करना होगा। “सौभाग्य से यह अतिभूखा विशालकाय राक्षस ब्लैकहोल हमारी पृथ्वी से 70 करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर स्थित है।
ब्लैकहोल कैसे बनते हैं ?
ब्लैक होल्स कैसे बनते हैं ? इसे सरल शब्दों में इस प्रकार समझ सकते हैं कि जब जब एक बहुत बड़े तारे का केंद्र अपने आप गिर जाता है या ढह जाता है तो तारकीय ब्लैक होल्स बन जाते हैं। जब ऐसा होता है, तो यह एक सुपरनोवा का कारण बनता है। सुपरनोवा एक महाविस्फोट करने वाला तारा है जो अंतरिक्ष में करोड़ों मील दूर-दूर तारे के हिस्से को विस्फोटित कर देता है।
वैज्ञानिकों को लगता है कि सुपरमैसिव ब्लैक होल उसी समय बनाए गए थे जब वे आकाशगंगा में थे। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ब्रह्मांड के शुरूआती दिनों में सबसे पहले छोटे ब्लैक होल्स का निर्माण हुआ था। खगोल वैज्ञानिक इस संभावना को भी तलाश रहे हैं कि सुपरमैसिव ब्लैकहोल्स उसी समय बन गए थे जब यह ब्रह्माण्ड बनने के शुरूआती दौर में था।
ब्लैकहोल्स कितने छोटे और कितने बड़े तक हो सकते हैं ?
वैज्ञानिकों के अनुसार ब्लैकहोल्स एक परमाणु के आकार से लेकर खरबों गुने बड़े हो सकते हैं। आपको जानकर बहुत ज्यादे हैरानी होगी कि ब्लैक होल्स इतने संघनीत होते हैं कि एक परमाणु के आकार वाले ब्लैकहोल का द्रव्यमान एक बहुत बड़े पर्वत से भी ज्यादा हो सकता है। सबसे बड़े ब्लैक होल को “सुपरमैसिव ” कहा जाता है। इन ब्लैकहोल्स के द्रव्यमान इतना ज्यादा होता है कि उनका वजन 30 खरब सूर्यों के बराबर होता है।
वैज्ञानिकों को इस बात का प्रमाण मिला है कि हर बड़ी आकाशगंगा या गैलेक्सी के बिल्कुल केन्द्र में एक सुपरमैसिव ब्लैक होल होता है, जो अरबों-खरबों उपग्रहों, ग्रहों और तारों को अपने चारों तरफ एक निश्चित गति में परिक्रमा करने को बाध्य करके उन्हें कंट्रोल करता है। उदाहरणार्थ हमारी मिल्की वे या आकाशगंगा के केंद्र में भी एक सुपरमैसिव ब्लैक होल है,जो हमारी समस्त आकाशगंगा के खरबों ग्रहों और सूर्य जैसे तारों को अपनी धुरी पर एक नियमित गति से चक्कर लगवा रहा है,इसका वजन हमारे सूर्य से 40 लाख गुना ज्यादा है।
ब्लैकहोल की खोज किसने किया?
ब्लैकहोल्स की खोज का श्रेय किसी भी एक वैज्ञानिक को नहीं दिया जा सकता, क्योंकि ब्लैकहोल्स की खोज में बहुत से वैज्ञानिकों का थोड़ा-थोड़ा योगदान रहा है, चूंकि ब्लैकहोल्स एक अदृश्य खगोलीय पिंड है, इसलिए इसकी अकथनीय गुरूत्वाकर्षणीय शक्ति के प्रभावों के आधार पर इसकी खोज अनुमान के आधार पर सदियों तक जारी रही।
ब्लैकहोल्स की खोज में प्रमुख रूप से वर्ष 1783 में भूविज्ञानी जॉन मिचेल, वर्ष 1796 में गणितज्ञ पिएर्रे-साइमन लाप्लास, वर्ष 1915 में अल्बर्ट आइंस्टीन,वर्ष 1930में खगोलविद सुब्रमन्यन चंद्रशेखर, वर्ष 1939 में ओप्पेन्हेइमेर, उनके सह लेखकों और तथाश्वार्ज़स्चाइल्ड, वर्ष 1958 में डेविड फिन्केइस्तें, वर्ष 1963 में रॉय केर और वर्ष 1967 में भौतिकविद् जॉन व्हीलर को व्यापक रूप से ब्लैकहोल्स खोजने का सामूहिक तौर पर श्रेय दिया जाता है।
लेखक के बारे में –
निर्मल कुमार शर्मा ‘गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक,सामाजिक,राजनैतिक, पर्यावरण आदि विषयों पर स्वतंत्र, निष्पक्ष, बेखौफ, आमजनहितैषी, न्यायोचित व समसामयिक लेखन। संपर्क- nirmalkumarsharma3@gmail.com