धरती अपने धुरी पर अवसर परिवर्तन के साथ घूमती है। जिससे कुछ स्थलों पर दिन का प्रकाश होता है, वहीं दूसरी जगहों पर अँधेरा रहता है। दिन के समय सब कुछ स्पष्ट दिखता है। जब आप हवाई जहाज से सफर करते हैं, तो आपको नीचे की जगह, समुद्र, खेत आदि स्पष्टता से दिखाई देते हैं। परंतु, रात्रि के समय आसमान से धरती को देख पाना मुश्किल होता है।
हालांकि, वैज्ञानिकों ने अब तक अद्भुत प्रगति की है। अंतरिक्ष में प्रेषित उपग्रहों में ऐसे उन्नत कैमरे होते हैं जिससे अँधेरे में भी हमें सब कुछ ठीक से दिखाई देता है। हाल ही में, अंतरिक्ष से रात्रि के समय धरती का एक वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसिद्ध हुआ है। उस वीडियो में दिखाया गया कि धरती आकाश से कैसी लगती है, जिसे देखकर अनेक लोग प्रभावित हुए हैं। वही वीडियो बहुत से लोगों द्वारा बार-बार प्रेक्षित किया जा रहा है।
Time Lapse वीडियो
अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ने एक वीडियो को पकड़ा, जो आजकल प्रचारित हो रहा है। यह स्टेशन पृथ्वी से 260 मील की ऊंचाई पर है। वीडियो में हम देख सकते हैं कि आसमान में से धरती रात्रि में कैसी लगती है। इस अद्वितीय दृश्य को टाइमलैप्स ने प्रस्तुत किया। यह दर्शाता है कि शहरों की रोशनी से धरती रात में भी कितनी प्रकाशित होती है।
नासा ने वीडियो जारी किया
नासा ने एक अद्भुत वीडियो प्रस्तुत किया। इससे विज्ञानजन प्लेनेट की अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं। टाइमलैप्स के माध्यम से अंतरिक्ष की चर्चा की जाती है जिसमें दिन-रात का चक्र भी शामिल है और कभी-कभी पृथ्वी के घूर्णन को भी दर्शाया जाता है। सोशल मीडिया पर इस तरह की वीडियोज को लोग बहुत पसंद करते हैं। फिर भी, कुछ मानते हैं कि यह असत्य है। उन्हें लगता है कि यह सीजीआई के प्रभाव का परिणाम है। कुछ लोग तो इसे देखकर कहते हैं कि वे बेवकूफ नहीं हैं, क्योंकि रात एक समय में सभी स्थानों पर नहीं हो सकती। इसलिए, वे मानते हैं कि वीडियो में कुछ गड़बड़ है।
धीमी होने लगेगी चंद्रयान के लैंडर की रफ्तार
- ISRO ने अभी हाल ही में चंद्रयान-3 के लैंडर को डी-बूस्टिंग मैनूवर से प्रेरित करने की योजना तैयार की है।
- इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य ‘विक्रम’ लैंडर को ऐसे कक्षा में पहुंचाना है जहां यह चांद के सबसे निकटतम स्थल Perilune से 30 किलोमीटर और सबसे बाहरी स्थल Apolune से 100 किलोमीटर की दूरी पर होगा।
- जब यह 30km x 100km के कक्षा में पहुंच जाएगा, उसके बाद लैंडर की गति को धीरे किया जाएगा।
- फिर यह 30 किलोमीटर की ऊंचाई से धीरे-धीरे चांद की दिशा में प्रस्थित होगा।
- वर्तमान में जब यह समतल गति से चल रहा है, तो इसे सीधा किया जाएगा और फिर यह चांद की सतह पर उतरने के लिए पूरी तरह से प्रस्तुत होगा।

23 अगस्त को चांद पर लैंड करेगा विक्रम लैंडर
क्या आप जानते है विक्रम लैंडर 23 अगस्त को चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरने की योजना है। वर्तमान में, ISRO लैंडर की धीमी गति पर संचालन प्रक्रिया में जुटा हुआ है, जिससे कि चांद के सतह पर सुरक्षित अवतरण हो सके। ISRO ने प्रकट किया है कि उसने सफलतापूर्वक डीबूस्टिंग कार्यवाही की है और इससे उसकी उच्चता 113 किमी x 157 किमी तक समाहित हो गई है। अगला डीबूस्टिंग कार्यवाही 20 अगस्त की रात 8 बजे की योजना बनाई गई है।
चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण 14 जुलाई को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से LVM3 यान के माध्यम से किया गया था। विक्रम लैंडर 5 अगस्त को चांद की परिप्रेक्ष्य में समाहित हो गया। 17 अगस्त को यह लैंडर अपने प्रेरण तंतु से पृथक हो गया। चंद्रयान-3, चंद्रयान-2 की उत्तराधिकारी मिशन है। इस मिशन का मुख्य लक्ष्य चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान को स्थापित करना और चंद्रमा के प्रदेश का अध्ययन करने वाला एक रोवर निर्धारित करना है। यह रोवर चंद्रमा की भौतिकता और विज्ञान की जानकारी इकट्ठा करेगा। यदि यह मिशन सफल होता है, तो भारत भी अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों की सीरी में जुड़ जाएगा जिन्होंने चंद्रमा पर सफल मिशन चलाए हैं।
डीबूस्ट से गुजरेगा लैंडर
अगर हम आगे की प्रक्रिया पर चर्चा करते हुए प्रकास डालू तो विक्रम लैंडर को अलग होने पर 30 किमी की नजदीकी बिंदु (पेरिल्यून) और 100 किमी की सर्वाधिक दूरवर्ती बिंदु (अपोल्यून) तक पहुंचाने के लिए “डीबूस्ट” (धीमा करने वाली प्रक्रिया) का सामना करना पड़ेगा। इस उच्चता पर पहुंचने के उपरांत, 23 अगस्त को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मुलायम अवतरण का प्रयास होगा। इसरो के विज्ञानियों की आशा है कि विक्रम लैंडर इस बार चांद की सतह पर सफलता से उतरेगा।
ऐसे चांद के करीब पहुंचता गया चंद्रयान-3
हम आपको बता दे की इससे पहले ISRO ने ट्वीट के माध्यम से सूचित किया था कि ‘चंद्रयान-3’ अब चंद्रमा की 153 किलोमीटर x 163 किलोमीटर वाली पथ में स्थित है, जिसे पहले ही अनुमानित किया गया था। इससे चंद्रमा के कक्ष में प्रवेश करने की प्रक्रिया समाप्त हो गई। चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण 14 जुलाई को हुआ था और यह पांच अगस्त को चंद्रमा के कक्ष में समाहित हुआ। इसके पश्चात, यह 6, 9 और 14 अगस्त को चंद्र की उच्चतर पथ में प्रवेश करता रहा और धीरे-धीरे चंद्र के करीब आता गया।

असली टेस्ट अभी बाकी
इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ ने लैंडिंग की प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए लोगो को बताया कि लैंडर की गति को 30 किलोमीटर की ऊँचाई से अंत में स्थलित करना बहुत महत्वपूर्ण है। उस वाहन को सीधा करने की सामर्थ्य वही चरण है जिसमें हमें अपनी सामर्थ्य दर्शानी होती है।
यह पूरा अभिगम कई बार अभ्यास किया जा चुका है। इस पूरे अभियान में, सही तरीके से उतराव के लिए कई तकनीकों का इस्तेमाल हुआ है। अगर 23 अगस्त को लैंडर चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतरता है, तो यह भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी।
निष्कर्ष
धरती की अवसर परिवर्तन प्रक्रिया की वजह से कुछ स्थलों पर दिन होता है, जबकि दूसरी जगहों पर रात रहती है। जबकि दिन में पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों को स्पष्टता से देखा जा सकता है, रात के समय यह कठिन हो जाता है। फिर भी, वैज्ञानिक प्रगति ने हमें अँधेरे में भी धरती को अंतरिक्ष से देखने की क्षमता प्रदान की है। अधिकांश लोग इस अद्भुत दृश्य को बार-बार देखना पसंद करते हैं।
Galaxy main sub se achcha hamara Jahan
Sare jahan se achcha HINDUSTAN hamara
Yes Absolutely right.
thanks for ur such a useful information 🙏
Bahut hi adbhut drishya hai..
अदभुद,अविस्मरणीय
देश के वैज्ञानिकों जिन्होंने इस मिशन को लक्ष्य तक पहुंचाया हृदय से कोटि कोटि अभिनंदन।
Sare jahan se achha hindustan hamara, yah bahut Khushi ka pal hai jo hamare mission karay suffal ho raha hai aur hum aage hi badate ja rahe hai. Pichhe dekhana achha nahi, barhe chalo bade chalo.
Thankful to our scientists and we are proud on our scientists 🙏
Mera Bharat mahan