Global Recession: ग्लोबल मंदी का अभी से ही दिखने लगी झलक, देखे असर

अमेरिका सहित कई विकसित देशों में मंदी (Recession in Advanced Countries) की आशंका दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. लेकिन जानकारों का कहना है कि अगर विकसित देशों की मंदी की चपेट मैं आते हैं तो इससे भारत को इसका बड़ा फायदा हो सकता है. जानिए भारत को कैसे फायदा होगा. 

पूरी दुनिया मंदी (Global Recession) की आहट से सहमी हुई है। अमेरिका सहित कई विकसित देशों में मंदी की आशंका हर बीतते दिन के साथ भयावह होती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) ने अमेरिकन इकॉनमी की ग्रोथ के अनुमान को घटाकर 2.9 फीसदी कर दिया है। उसका कहना है कि दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी के मंदी से बचने के आसार दिन-ब-दिन कम होते जा रहे हैं।

लेकिन जानकारों का कहना है कि अमेरिका जैसे विकसित देशों में मंदी भारत के लिए फायदेमंद हो सकती है। उनका तर्क है कि विकसित देशों में मंदी से दुनियाभर में कमोडिटीज की कीमतों में कमी आएगी। इससे भारत को महंगाई से निपटने में मदद मिलेगी.

Global Recession

सिटीग्रुप (Citigroup) के मैनेजिंग डायरेक्टर और भारत में इसके चीफ इकनॉमिस्ट समीरन चक्रवर्ती (Samiran Chakraborty) ने ब्लूमबर्ग टीवी के साथ इंटरव्यू में कहा कि भारत कमोडिटीज का नेट इम्पोर्टर (Net Importer of Commodity) है।

इसलिए विकसित देशों में मंदी से भारत को महंगाई के मोर्चे पर राहत मिलनी चाहिए। लेकिन भारत को भी वैश्विक मंदी के कारण दबाव का सामना करना पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि इससे एक्सपोर्ट प्रभावित होगा और इकनॉमिक ग्रोथ (Economic Growth) में कमी आएगी।

इस समय देश के नीति निर्माताओं का जोर महंगाई को काबू करने पर है। इसलिए कहा जा सकता है कि मंदी भारत के लिए कुछ मायनों में फायदेमंद हो सकती है।

रेपो रेट में इजाफा 

पूरी दुनिया में मंदी की आशंका जोर पकड़ रही है। महंगाई को काबू में करने के लिए दुनियाभर के देशों के केंद्रीय बैंकों (RBI) ने प्रमुख ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रही लड़ाई (Russia-Ukraine war) और महामारी के दौर में उठाए गए राहत के कदमों को वापस लिए जाने के कारण महंगाई चरम पर है। यही वजह है कि अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई विकसित देशों के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में तेजी से इजाफा कर रहे हैं। आरबीआई (RBI) भी मई के ब्याज दरों में 90 फीसदी इजाफा कर चुका है।

जानकारों का कहना है कि इससे अभी और तेजी देखने को मिल सकती है. इसी वजह से यह है कि महंगाई आरआरबी की सीमा से कहीं अधिक स्तर पर बनी हुई है. चक्रवर्ती ने कहा है कि अगर महंगाई काबू में नहीं आती है तो आरआरबी रेपो रेट कुछ ऑफिस दी तक ले जा सकता है. आरआरबी के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा ने हाल में कहा था कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई (CPI Inflation) अगली 3 तिमाहियों आरआरबी के सीमा से ऊपर बनी रह सकती है. आरआरबी ने इसके लिए 2 से 6 फ़ीसदी के टारगेट रेंज रखी है.

सस्ता होगा आयात 

अधिकारी ने कहा है कि यह एक अच्छा एहसास नहीं है लेकिन इसे सरकार की लागत में काफी कमी आएगी. पश्चिम में मंदी से कमोडिटी और तेल की कीमतें कम हो सकती है. अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था कांच के मोर्चे पर संघर्ष करती है. जो भारत के लिए उर्वरक और कच्चे तेल की आयत की कीमतें घटेगी.

अधिकारी ने कहा कि एक तरह से हम वैश्विक अर्थव्यवस्था से गंभीर रूप से जुड़े हुए हैं, लेकिन थोड़े अछूते भी हैं. बढ़ती महंगाई दर को लेकर अधिकारी ने कहा कि कोई मुद्रास्फीति पर कैसे अंकुश लगा सकता है? हमें सही समय की प्रतीक्षा करने की जरूरत है, हालात स्थिर हो जाएंगे. 

तेल का उत्पादन बढ़ा रहा भारत 

इस बीच पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी (Hardeep Singh Puri) ने कहा कि भारत 2030 25 प्रतिशत मांग को पूरा करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ा रहा है. वर्तमान में भारत प्रतिदिन 5000000 बैरल पेट्रोलियम की खपत करता है और इसका लगभग 85 प्रतिशत आयत करता है. 

दिखने लगी है झलक 

शुक्रवार को क्रूड ऑयल की कीमतों में 3 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई. मंदी का डर और चीन के कोविड-19 मैं इजाफे की वजह से डिमांड प्रभावित हुई है. ब्रेंट क्रूड फ्यूचर 2.94 डॉलर या 3.1 फ़ीसदी गिरकर 91.63 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है, जबकि यूएस बेस्ट टैक्स ऑफिस इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड 3.50 डॉलर या 3.9 फ़ीसदी गिरकर 85.61 डॉलर पर पहुंच गया है.

अगर वैश्विक बाजार मैं क्रूड ऑयल की कीमतें घटेगी तो इसका असर भारत के पेट्रोलियम डीजल की कीमतों पर दिख सकता है. अगर पेट्रोल डीजल की कीमतें कम होंगी तो ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी घटेगा. ऐसे में कमोडिटी की कीमतों में गिरावट आ सकती है. 

कब आती है मंदि 

जब किसी भी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) मैं लगातार छह महीने यानी दो तिमाही तक गिरावट आती है तो इसे अर्थशास्त्र में आर्थिक मंदी कहां जाता है. वहीं अगर लगातार दो तिमाही के दौरान किसी देश की जीडीपी में 10 फ़ीसदी से ज्यादा की गिरावट आती है तो उसे डिप्रेशन कहा जाता है.

जो भयावह होता है. आर्थिक मंदी जब भी आती है, जनजीवन पर व्यापक असर छोड़ जाती है. इससे जीडीपी का साइज घट जाता है क्योंकि रोजमर्रा की चीजें महंगी हो जाती हैं. लोगो के खर्च बढ़ जाते हैं.

निष्कर्ष 

जैसा कि दोस्तों हमने आपको इस लेख की सारी जानकारी अपने इस लेख के जरिए आपको बताने की कोशिश की है. और यह भी बताया है कि इस ग्लोबल मंदी से हमारे इंडिया में कैसे फायदे हो सकते हैं. अगर फिर भी ग्लोबल मंदी से जुड़ा कोई अन्य सवाल हो जिसे हम इसीलिए के जरिए पूरा ना कर सके आप हमें कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हैं आपके पूछे गए प्रश्नों का जवाब जरूर देंगे.

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