देश के पहले निजी रॉकेट विक्रम-1 का सफल परीक्षण, जानें रॉकेट तथा इसकी क्षमता से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

एयरोस्पेस से जुड़ी निजी क्षेत्र की दिग्गज अमेरिकी कंपनी स्पेस एक्स से हम सभी भली भांति वाकिफ़ हैं। चार साल पहले भारत में शुरू हुए ऐसे ही एक स्टार्टअप स्काईरुट एयरोस्पेस ने हाल ही में अपने तथा देश के पहले निजी रॉकेट का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है, जो भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में हो रहे विकास को दर्शाता है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि, सन 1962 में Indian National Committee for Space Research (INCOSPAR) के साथ शुरू हुए भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम जिसे 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) का नाम दिया गया, ने दुनियाँ में भारत का एक महत्वपूर्ण स्थान सुनिश्चित किया है।

साइकिल से शुरू हुआ ISRO का अंतरिक्ष का सफर आज इसे दुनियाँ की कुछ चुनिंदा अंतरिक्ष एजेंसी में सुमार करता है, जिसके व्यापारिक अंग अंतरिक्ष (Antrix) का वित्ति वर्ष 2019-20 में शुद्ध लाभ तकरीबन 30 मिलियन डॉलर रहा। भारत की इस क्षेत्र में हुए विकास का ही नतीजा है कि आज कोई निजी क्षेत्र की कंपनी यह कीर्तिमान स्थापित करने में सफल हुई है।

विक्रम-1 रॉकेट के बारे में

स्काईरुट एयरोस्पेस द्वारा निर्मित रॉकेट, जिसका नाम विक्रम-1 रखा गया है के तीसरे चरण के इंजन का परीक्षण 5 मई को नागपुर में किया गया, जो सफल रहा कंपनी के मुताबिक इस वर्ष के अंत तक इस रॉकेट को लॉन्च किए जाने की योजना है।

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विक्रम-1 रॉकेट में ठोस ईंधन से चलने वाले तीन चरण हैं। प्रत्येक चरण के जलने का समय 80 से 108 सेकंड के बीच होता है। विक्रम-1 रॉकेट के तीसरे चरण का नाम प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर ‘कलाम-100’ रखा गया है। कंपनी के अनुसार, यह 100 kN (~ 10 टन) का पीक वैक्यूम थ्रस्ट पैदा करता है और इसका बर्न टाइम 108 सेकंड है।

इसकी भार क्षमता की बात करें तो विक्रम 1 एक स्मॉल लिफ्ट लॉन्च वेहिकल की श्रेणी का रॉकेट है, जो हल्के उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। ये रॉकेट 250 किलोग्राम भार तक के उपग्रहों को 500 किलोमीटर की ऊँचाई तक ले जा सकने में सक्षम है।

स्काईरुट एयरोस्पेस के बारे में

स्काईरुट एयरोस्पेस हैदराबाद आधारित एक स्टार्टअप है जिसे 12 जून 2018 को पवन कुमार चंदना तथा नागा भारत डाका द्वारा शुरू किया गया। पवन चंदना वर्तमान में कंपनी के सीईओ पद पर हैं, जबकि नागा भारत कंपनी के सीओओ हैं। ये दोनों इससे पूर्व ISRO में कार्य कर चुके हैं।

पवन चंदना ने भारत में बने सबसे बड़े रॉकेट GSLV Mk-III पर पांच साल तक काम किया। उन्होंने दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ठोस रॉकेट चरण, S200, GSLV Mk-3 के बूस्टर रॉकेट के लिए सिस्टम इंजीनियर के रूप में भी काम किया।

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वहीं नागा भारत की बात करें तो भारत की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसी में रहते हुए, उन्होंने वीएसएससी में एक फ्लाइट कंप्यूटर इंजीनियर के रूप में काम किया और कई कुंजी ऑनबोर्ड कंप्यूटर मॉड्यूल के लिए हार्डवेयर और फर्मवेयर बनाया है जो लॉन्च वाहन के अनुक्रमण, नेविगेशन, नियंत्रण और मार्गदर्शन कार्यों के लिए महत्वपूर्ण हैं।

नागा भारत एवं पवन चंदना

कंपनी के अनुसार “आज हम की तकनीक की सीमाओं से आगे बढ़ते हुए, सभी के लिए अंतरिक्ष उपलब्ध कराने के मिशन पर हैं। हम एक ऐसे भविष्य की दिशा में काम कर रहे हैं जहां अंतरिक्ष हमारे जीवन का हिस्सा बन जाए, और ऐसा परिवर्तन मानव जाति को ऐसे आयाम में ले जाने में मदद करेगा जैसे पहले नहीं था।”

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